Yana Suresh
उस रात दिवारो पे अपने हाथों से उस तस्वीर को बनाया, ऐसा बनाया के बचपन याद आया, जब दीवार पूरी स्केचबुक होती थी, और मैं दीवार रंगते-रंगते खुद रंग जाती थी, जब मैं सिर्फ आज के बारे में सोचती थी, और अब कल आज से ज़्यादा मायने रखने लगा, जब सिर्फ दिल की आवाज सुनाई देती थी, मुझे क्या, पता था कि दिमाग से भी प्यार होता है , जब जीवन का गम था कि मुझे क्रेयॉन नहीं मिले, अब जब जवान, हुई तो ये गम है कि मुझे अभी तक सच में कुछ हासिल न हुआ।
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