बचपन छोड़ आये हम
-Ishaani Chaudhary
बहुत समय बाद खोली पुरानी गुल्लक आज,
मगर गुल्लक भरी ना पैसों से बस बचे है उस में कुछ बचपन के राज़;
बचपन के वो दिन अनजान रहते थे तब,
कल की ना कोई परवाह होती थी जब;
हर छोटी चीज़ पे मुस्कान खिल उठती थी और देती थी राहत,
आज तो लबों पे बनती है झूठी मुस्कुराहट;
उन दिनों ज़िंदगी में भरे थे कितने रंग,
जो बीतें हुए यादों में छुपे है अनगिनत दोस्तों के संग;
उन दिन सपने तो चाँद को छूने के होते,
मगर भागते तो हम तितलियों के पीछे थे;
देखते है दर्पण में आज,
तो धुँधला सा दिखता वो बचपन का ताज;
बचपन की वो यादें ऐसे बचा के रखी है,
जैसे गुल्लक में वो पड़े सिक्के;
उन दिनों की याद जब आती है,
मन के बचे को जगा जाती है;
आज खुलती है वो गुल्लक, और बस एक खयाल करता है मुझे नम,
ना जाने किन अनजान गलियों में बचपन छोड़ आए हम।
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